Posts

Showing posts from November, 2020

संगती

Image
घुमे मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारा, पुजा साधु-महात्मा का चरण द्वारा, मिला कुछ फिर ज्ञान का भंडारा, हल्का होने लगा अज्ञानता का अँधियारा। हो गई इतने में संगत ऐसी, भाए मन को पर कर दे दुर ज्ञान की ज्योति। मन तो है एक चंचल बालक, उसे भाए केवल सुख का आलम, वो न जाने ज्ञान का पालन। मन की पकड़ो सदा लगाम, सदा रखो कुसंगती का ध्यान। संगति ही हमें बनाती, ज्ञान की राह दिखाती। कृष्ण सी दोस्ती कराती, हर युद्ध में विजय दिलाती। कुसंगति विनाश जगाती, दानवीर की दुर्गती कराती।  

धनतेरस

Image
 धनतेरस आई है वातावरण में थोड़ी ख़ुशियाँ छाई है, साथ अपने एक नई उमंग भी लाई है, छोटी-बड़ी सब दुकानों में अब थोड़ी हलचल छाई है, उतरे थे चेहरे कई दिनों से, फिर से ग्राहकों की रोनक आई है। धनतेरस आई है वातावरण में थोड़ी ख़ुशियाँ छाई है, साथ अपने कुछ बंदिशों की मोहर भी साथ लाई है, अभी भी कोरोना की घटा छाई है। इसको नजर अंदाज न करना,खुशियों को बरबाद न करना, अपने और अपनो को बचाना है, बंदिशों का पालन करते हुए ही, खुशियों के साथ धनतेरस मनाना हैं।        

जिंदगी का खजाना

Image
 जिंदगी है रंग बिरंगे पलो की माला, कभी सुखों की लहर तो कभी मिलें दुःखो का खजाना। हर पल है एक अनमोल खजाना, दिखाता है जिन्दगी का हर बार रूप निराला। कभी सुखों की चादर से हमें चमकाए, कभी दुखों के झंकार से हमें मजबुत बनाए। जिंदगी है रंग बिरंगे पलो की माला, कभी सुखों की लहर तो कभी मिलें दुःखो का खजाना। जिन्दगी जीने का बस एक है अंदाज, जिलों हर पल को एक मुस्कुराहट के साथ। कल क्या हो ये किसने जाना हमें तो बस आज को है चमकना। जिंदगी है रंग बिरंगे पलो की माला, कभी सुखों की लहर तो कभी मिलें दुःखो का खजाना।

हमारा गाँव

Image
गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा। दोस्तों के संग वो धुम मचाने का नजारा, कभी कंचे तो कभी गिली डंडा खेलता वो नजारा। गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा। गाँव तो था सबको ही बड़ा प्यारा पर कभी सपनो ने तो कभी परेशानियों ने दिखा दिया शहरो का नजारा। आ तो गए कर के रुख शहरों का नजारा , रह गया कही न कही मन में वो गाँव की शान्ति का सुकुन प्यार।। गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा। आना जीतना आसान था जाना अब उतना आसान भी नही, अब हम भी घुल गय है शहरो की माया जाल में कही, फिर भी रह- रह के आशाएँ यही जगाते है, जवानी न सही बुढापा तो गुजरे गाँव में यही सपने सजाते है। गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा।