हमारा गाँव


गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा।
दोस्तों के संग वो धुम मचाने का नजारा, कभी कंचे तो कभी गिली डंडा खेलता वो नजारा।
गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा।
गाँव तो था सबको ही बड़ा प्यारा पर कभी सपनो ने तो कभी परेशानियों ने दिखा दिया शहरो का नजारा।
आ तो गए कर के रुख शहरों का नजारा , रह गया कही न कही मन में वो गाँव की शान्ति का सुकुन प्यार।।
गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा।
आना जीतना आसान था जाना अब उतना आसान भी नही,
अब हम भी घुल गय है शहरो की माया जाल में कही,
फिर भी रह- रह के आशाएँ यही जगाते है, जवानी न सही बुढापा तो गुजरे गाँव में यही सपने सजाते है।
गाँव की वो गलियाँ, घर का वो चौबारा जिसमें गुजरा बच्चपन हमारा।



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