माया आम की।
फलो का राजा होता हैं आम,
लेकिन ये होता नही बिलकुल भी आम।
छुपा रखा है इसने कई गुणों की खान,
सुनाता हैं ये समाज के कई फरमान।
खट्टे आम कुछ को ही भाते,
नए बदलाव कुछ को ही रास आते।
धीरे-धीरे ये पक्कते जाते सबको ये स्वाद दिलाते,
बदलावो की भी यही है बात, घुल जाते है सब मे समय के साथ।
ज्यादा ही ये जब पक्क जाते किसी को भी ना रास आते,
बदलावों में भी जो घुल ना पाते ,
समाज से अलग अपने को पाते।
प्रकृति की तो यही है माया,
समय के साथ बदलती अपनी काया।
जो इसमे बह पाया, वही तो आखिर तक है रह पाया।
👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteकितनी प्यारी और सरल कविता | बहुत सुन्दर | आप हमारीवाणी और ब्लॉगसेतु पर अपने ब्लॉग को रजिस्टर कर लें ज्यादा पाठकों के लिए | फेसबुक पर बने ब्लॉगर समूह में भी पोस्ट करें |
ReplyDelete