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Dreams

  The dreams which are ours are ours only,  it is our responsibility to fulfill them.   We can take someone's help for those dreams:  but no one's pity is needed.

बदलाव

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बदल रहा है मौसम, बदल रहा है नजारा,  बदल रहा है, जीवन का सार सारा,  बदल रही है मेरी कहानी, बदल रही है मेरी मनमानी।  बदलावो का आया ऐसा तूफान, बदल जायेगा मेरा संसार।  बदलावो कि यह ऐसी कहानी लगती सभी बेटियों को अपनी सी कहानी।  बदल दे आँगन बदल दे पुरा घरबार,  क्यु बनाया बेटी का ऐसा संसार?  बदल रहा है मौसम बदल रहा है नजारा,  न जाने क्या होगा आगे का नजारा,  आएगी खुशियाँ या ढूँढ लेगा दुःख हमारा गलियारा।  रह-रह के सवाल आता, घर से दुर जाने का खयाल भी हमे डराता।  मौसम ने की ऐसी मनमानी, बदलती सी लग रही है जीवन कि कहानी।  बेटी हो जाएगी बेगानी, ऐसी क्यु कि समाज ने अपनी मनमानी?                                                           (Khushboo soni) 

उड़ान

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उड़ती चिड़िया आसमान में हर कहि, इनमे स्त्री-पुरुष का भेद नही। जहाँ चाहती उड़ जाती, पुरे आसमान को नाप के आती, पंख फैलाती झट से चहचहाती उड़ जाती, जैसे ख़ुशी में गाना गाती। मानव की इनसे अलग है कहानी, स्त्री की उड़ान लगती सब को बचकानी। हर कोई इनको कैद करना चाहे, हर कोई इनके पंख कुतरना चाहे। बन जाए वो बस घर की रानी, भुल के अपने सपनो की कहानी। हर पुरुष की यही है चाहत सुहानी।

चाँद की कहानी

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        रहता नही कभी चाँद भी हमेशा पुरा,  तो क्यों हो हम दुखी जब रह जाए जिंदगी में कुछ अधुरा। जिन्दगी की तो बस यही है कहानी, कभी अमावश्या तो कभी पूर्णिमा है आनी। अमावश्या ही ज्ञान कराता, टिम-टिम तारो का साथ दिखाता, पूर्णिमा का चाँद है ज्ञानी वो न भूले अमावश्या की कहानी, टिम-टिम तारो का भी मान बढाता, खुद भी चमकता ओरो को भी चमकाता।  जिन्दगी की तो बस यही है कहानी,            कभी अमावश्या तो कभी पूर्णिमा है आनी।             

सपनों की उडान

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   भरते है उडान सपनो की हर कोई, मिलती है मंजिले कुछ को, खो जाते है राहो में ही कई कहि। सपनों का सफर आसान नही, होती है इसमे कुर्बानिया  कई।  निराशाओं के बादल आते है इसमे कई, जो लड़ता है इन बादलो से , जीतता है वही। होती असफलता फिर भी खुद को थामता नही। मिलती है सफलता उसे जो कभी हार मानता नही।

संगती

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घुमे मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारा, पुजा साधु-महात्मा का चरण द्वारा, मिला कुछ फिर ज्ञान का भंडारा, हल्का होने लगा अज्ञानता का अँधियारा। हो गई इतने में संगत ऐसी, भाए मन को पर कर दे दुर ज्ञान की ज्योति। मन तो है एक चंचल बालक, उसे भाए केवल सुख का आलम, वो न जाने ज्ञान का पालन। मन की पकड़ो सदा लगाम, सदा रखो कुसंगती का ध्यान। संगति ही हमें बनाती, ज्ञान की राह दिखाती। कृष्ण सी दोस्ती कराती, हर युद्ध में विजय दिलाती। कुसंगति विनाश जगाती, दानवीर की दुर्गती कराती।  

धनतेरस

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 धनतेरस आई है वातावरण में थोड़ी ख़ुशियाँ छाई है, साथ अपने एक नई उमंग भी लाई है, छोटी-बड़ी सब दुकानों में अब थोड़ी हलचल छाई है, उतरे थे चेहरे कई दिनों से, फिर से ग्राहकों की रोनक आई है। धनतेरस आई है वातावरण में थोड़ी ख़ुशियाँ छाई है, साथ अपने कुछ बंदिशों की मोहर भी साथ लाई है, अभी भी कोरोना की घटा छाई है। इसको नजर अंदाज न करना,खुशियों को बरबाद न करना, अपने और अपनो को बचाना है, बंदिशों का पालन करते हुए ही, खुशियों के साथ धनतेरस मनाना हैं।